अंग्रेज़ी-प्रेमी मम्मियाँ
भारतीयों में, विशेषकर नई नवेली मम्मियों में, अंग्रेज़ी की दीवानगी ग़ज़ब है. उनके बच्चे "आँ", "ऊँ" करना शुरू किए नहीं कि उनके मुँह में "A for apple, B for boy" ठूँसना शुरू कर देती हैं. बच्चों को चीज़ें सिखाना ताकि वे समझदार बनें, एक बात है; उन्हें चीज़ें सिखाना ताकि वे शोपीस बनें, बिल्कुल अलग बात है. बच्चों से अंग्रेज़ी बुलवाकर वाहवाही लूटना हास्यास्पद और निंदनीय दोनों है.

इस समस्या के कई पहलू हैं. आइए इस पर बात करते हैं. पहला: अधिकतर मम्मियों को ख़ुद अंग्रेज़ी नहीं आती इसीलिए टूटी-फूटी, ऐड़ी-टेड़ी, ऊटपटाँग अंग्रेज़ी बोलती हैं. कभी गूगल ट्रांसलेट से कुछ उठा लिया, तो कभी यूट्यूब से 2 मिनट की वीडियो देखकर अंग्रेजी वाली मैडम बन गईं.

सबसे बड़ी गड़बड़ तब होती है जब पूरे वाक्य न बोलकर हिंदी शब्दों की जगह अंग्रेज़ी शब्द रख दिए जाते हैं. जैसे कि "जल्दी जल्दी खाओ" को "Quickly quickly eat" जबकि "Eat quickly" से काम चल सकता है.

दूसरी बात, जो कि बहुत शर्मनाक है, अपनी मातृभाषा के प्रति एक अनादर और हीनता का भाव बच्चों के अंदर पैदा करना. ऐसे कितने बच्चे हैं जिनके सामने हिंदी के चार शब्द बोल दो तो बड़े गर्व के साथ कहते हैं कि, "इतनी हिंदी मुझे नहीं आती." और इन नक़ली अंग्रेज़ों को अंग्रेज़ी भी नहीं आती. बस ज़िंदगी quickly quickly eat बोलते निकल जाती है.

मातृभाषा से प्रेम राष्ट्रप्रेम की तरह कोई नैतिक कर्तव्य नहीं है बल्कि एक सहज भाव होना चाहिए. इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि आप दूसरी भाषाओं को ना सीखें या उनसे घृणा करें. मातृभाषा से प्रेम करने के लिए अन्य भाषाओं से घृणा करना ज़रूरी नहीं है. वैसे ही जैसे एक अच्छा हिंदू होने के लिए मुसलमानों से घृणा करना ज़रूरी नहीं है, और ना ही एक अच्छा हिंदुस्तानी होने के लिए पाकिस्तानियों से घृणा करना ज़रूरी है.